Bachpan Ke Din Shayari, Bachpan Shayari, Childhood Shayari, Bachpan ke Din Shayari (Hindi) Bachpan Ki Yaade, shayari on Bachpan, बचपन पर शायरी - बचपन की यादें शायरी
Bachpan Ke Din Shayari: "वो बचपन के दिन भी क्या खूब थे, ना दोस्ती का मतलब पता था और ना ही मतलब की दोस्ती थी . . ." दोस्तों कहने वाले ने क्या खूब कहा है। बचपन हर किसी के जीवन का स्वर्णिम काल माना जाता है। हर किसी के जीवन में बचपन से जुड़े बहुत यादे होती है, और इंसान इन यादों को ताउम्र याद रखता है और ये यादें उसके जीवन के साथ ही ख़त्म होती है। जी हाँ दोस्तो, इस पोस्ट में हम आपके साथ कुछ शानदार और मजेदार "Bachpan Ke Din Shayari (बचपन के दिन शायरी) शेयर करने वाले है और उम्मीद है आपको अच्छे लगेंगे। यह भी देखे: Attitude Shayari for Boy - एटीट्यूड शायरी
Bachpan ke Din Shayari (Hindi) Bachpan Ki Yaade Shayari - बचपन पर शायरी
झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।
ये उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।
रोने की वजह ना थी
ना हसने का बहाना था
क्यों हो गए हम इतने बड़े
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
ना हसने का बहाना था
क्यों हो गए हम इतने बड़े
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
कितने खुबसूरत हुआ करते थे बचपन के वो दिन ..
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी ..!
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी ..!
मां की कहानी थी परीयों का फसाना था,
बारिश में कागज की नाव थी,
बचपन का वो हर दिन - हर मौसम सुहाना था।
बारिश में कागज की नाव थी,
बचपन का वो हर दिन - हर मौसम सुहाना था।
बचपन में आकाश को छूता सा लगता था,
इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं।
इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं।
चपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे।
कोई मुझको लौटा दे वो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे।
कोई मुझको लौटा दे वो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।
आजकल आम भी पेड़ से खुद गिरके टूट जाया करते हैं
छुप छुप के इन्हें तोड़ने वाला अब बचपन नहीं रहा।
छुप छुप के इन्हें तोड़ने वाला अब बचपन नहीं रहा।
बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे जहां चाहा रो लेते थे,
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई।
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई।
कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।
बचपन में खेल आते थे हर इमारत की छाँव के नीचे…
अब पहचान गए है मंदिर कौन सा और मस्जिद कौन सा..!
अब पहचान गए है मंदिर कौन सा और मस्जिद कौन सा..!
काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
होठों पे मुस्कान थी कंधो पे बस्ता था,
सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था।
सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था।
वे दिन कुछ खास और अच्छे थे
जब हम छोटे बच्चे थे
ना किताबें थीं, ना पढ़ाई थी
सिर्फ़ खेल कूद और लड़ाई थी।
जब हम छोटे बच्चे थे
ना किताबें थीं, ना पढ़ाई थी
सिर्फ़ खेल कूद और लड़ाई थी।
बचपन भी कमाल का था, खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें
या ज़मीन पर
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी !!
जो सपने हमने बोए थे नीम की ठंडी छाँवों में,
कुछ पनघट पर छूट गए, कुछ काग़ज़ की नावों में।
कुछ पनघट पर छूट गए, कुछ काग़ज़ की नावों में।
कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से,
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं।
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं।
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में,
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए,
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए।
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए,
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए।
ज़िन्दगी छोड़ आया हूँ कहीं उन गलियों मे,
जहाँ कभी दौड़ जाना ही ज़िन्दगी हुआ करती थी।
जहाँ कभी दौड़ जाना ही ज़िन्दगी हुआ करती थी।
तो मित्रो आपको ये Bachpan Ke Din Shayari कैसी लगी हमें कमेन्ट करके बताने की किरपा करिये। फिर मिलेंगे - तब तक ये पढ़ सकते है: Dosti Shayari - दोस्ती शायरी